Sholay 1975 Amitabh Bachchan, Dharmendra, Hema Malini All time Blockbuster movie
फ़िल्म का विवरण  
नाम: शोले (Sholay)  
रिलीज़: 15 अगस्त 1975  
निर्देशक: रमेश सिप्पी  
मुख्य कलाकार:  
धर्मेंद्र (वीरू)  
अमिताभ बच्चन (जय)  
संजीव कुमार (ठाकुर बलदेव सिंह)  
अमजद खान (गब्बर सिंह)  
हेमा मालिनी (बसंती)  
जया भादुड़ी (बच्चन) (राधा)  
ए. के. हंगल (रहीम चाचा / इमाम साहब)  
सत्येन कप्पू (रामलाल)  
  
फ़िल्म की मुख्य थीम  
यह "मसाला-एक्शन" फ़िल्म है, जिसे अक्सर भारत की पहली 'करी वेस्टर्न' (Curry Western) कहा जाता है। यह दोस्ती, बदला, अच्छाई बनाम बुराई और बलिदान की एक महागाथा है।  
  
फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)  
भाग 1: मिशन की शुरुआत  
फ़िल्म की शुरुआत ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) से होती है, जो एक रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर हैं। वह रामगढ़ गाँव को आतंकित करने वाले खूंखार डाकू गब्बर सिंह (अमजद खान) से बदला लेना चाहते हैं।  
इसके लिए, ठाकुर दो छोटे-मोटे, लेकिन दिलेर चोरों - वीरू (धर्मेंद्र) और जय (अमिताभ बच्चन) - को जेल से छुड़वाकर अपने पास लाते हैं। ठाकुर ने इन दोनों को एक बार ट्रेन डकैती को बहादुरी से रोकते हुए देखा था। वह इन दोनों को गब्बर सिंह को "ज़िंदा" पकड़कर लाने का काम सौंपते हैं।  
भाग 2: रामगढ़ में आगमन और प्यार  
जय और वीरू रामगढ़ पहुँचते हैं। गाँव में उनकी मुलाकात दो अहम किरदारों से होती है:  
बसंती (हेमा मालिनी): एक बहुत ज़्यादा बातूनी और चुलबुली टाँगेवाली। वीरू तुरंत उसे दिल दे बैठता है।  
राधा (जया भादुड़ी): ठाकुर की विधवा बहू, जो खामोशी से घर का काम करती है। जय, जो खुद बहुत शांत स्वभाव का है, चुपके-चुपके राधा से प्यार करने लगता है।  
भाग 3: ठाकुर का अतीत (असली ट्विस्ट)  
होली के दिन, गब्बर के डाकू रामगढ़ पर हमला कर देते हैं। जय और वीरू बहादुरी से लड़ते हैं और डाकुओं को खदेड़ देते हैं। लेकिन वे हैरान होते हैं कि इस पूरी लड़ाई में ठाकुर ने बंदूक क्यों नहीं उठाई।  
तब ठाकुर उन्हें अपनी असली और दर्दनाक कहानी बताते हैं:  
गब्बर सिंह, ठाकुर की पकड़ से भाग गया था और बदला लेने के लिए रामगढ़ आया था।  
गब्बर ने ठाकुर के पूरे परिवार (बेटे, बहू, पोते) को मार डाला था, सिर्फ एक बहू (राधा) को ज़िंदा छोड़ा था।  
जब ठाकुर ने गब्बर का सामना किया, तो गब्बर ने ठाकुर के दोनों हाथ काट दिए थे।  
यह सच्चाई जानने के बाद, जय और वीरू (जो पहले पैसे के लिए काम कर रहे थे) अब ठाकुर के बदले को अपना मिशन बना लेते हैं।  
भाग 4: जय-वीरू बनाम गब्बर  
इसके बाद जय-वीरू और गब्बर के बीच कई टकराव होते हैं। वे गब्बर के कई आदमियों को मार गिराते हैं।  
भाग 5: बसंती का नाच और वीरू का गुस्सा  
एक लड़ाई के दौरान, गब्बर वीरू और बसंती को पकड़ लेता है। वह वीरू को बाँध देता है और बसंती के सामने शर्त रखता है - "जब तक तेरे पैर चलेंगे, इसकी (वीरू की) साँस चलेगी!"  
बसंती, वीरू की जान बचाने के लिए तपती धूप में टूटे काँच के टुकड़ों पर नाचने के लिए मजबूर हो जाती है ("जब तक है जाँ, जाने जहाँ, मैं नाचूँगी")। जब बसंती थक कर गिर जाती है, तब जय और ठाकुर हमला करके उन्हें छुड़ा लेते हैं।  
भाग 6: क्लाइमेक्स - जय का बलिदान  
गब्बर, रामगढ़ पर आखिरी और सबसे बड़ा हमला करता है। जय और वीरू एक पुल के पीछे छिपकर डाकुओं का मुकाबला करते हैं। वे अपना मशहूर सिक्का (Coin) उछालते हैं (जो हमेशा 'हेड्स' ही आता था)। जय टॉस जीत जाता है और वीरू को गाँव जाकर मदद (गोला-बारूद) लाने के लिए भेजता है।  
जय अकेले ही डाकुओं की पूरी फ़ौज को रोकता है, लेकिन बुरी तरह ज़ख़्मी हो जाता है। जब तक वीरू लौटता है, जय उसकी बाँहों में दम तोड़ देता है। (यह भारतीय सिनेमा के सबसे भावुक सीन्स में से एक है)।  
भाग 7: ठाकुर का बदला  
अपने दोस्त को खोकर, वीरू गुस्से में पागल हो जाता है और गब्बर का पीछा करता है। वह गब्बर को पकड़कर लगभग मार ही डालता है, लेकिन तभी ठाकुर वहाँ पहुँच जाते हैं।  
ठाकुर, वीरू को रोकते हैं और कहते हैं, "इसे मैं मारूँगा!"। ठाकुर, गब्बर को अपने बिना हाथों वाले शरीर और कीलों वाले जूतों से मार-मारकर अधमरा कर देते हैं। वह गब्बर को जान से मारने ही वाले होते हैं कि पुलिस आ जाती है और ठाकुर को रोकती है, कहती है "कानून को अपने हाथ में मत लो।"  
अंत (Ending):  
पुलिस गब्बर सिंह को गिरफ्तार कर लेती है। जय का अंतिम संस्कार किया जाता है। वीरू, दुखी मन से ट्रेन में बैठकर रामगढ़ छोड़ने लगता है, तभी बसंती वहाँ आती है और उसका हाथ थाम लेती है। ट्रेन चल पड़ती है और स्टेशन पर, ठाकुर की विधवा बहू राधा, एक बार फिर अकेली रह जाती है।
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			