Gulaal 2009 Most Demanded Movie
ज़रूर, यह रही 2009 की बेहद प्रशंसित और डार्क पॉलिटिकल ड्रामा फ़िल्म 'गुलाल' (Gulaal) की पूरी कहानी और सभी डिटेल्स।
फ़िल्म का विवरण
नाम: गुलाल (Gulaal)
रिलीज़: 13 मार्च 2009
निर्देशक: अनुराग कश्यप
मुख्य कलाकार:
के. के. मेनन (दुके बन्ना)
राज सिंह चौधरी (दिलीप सिंह)
अभिमन्यु सिंह (रणसा सिंह)
जेसी रंधावा (अनुजा)
दीपक डोबरियाल (भाटी)
माही गिल (माधुरी)
आदित्य श्रीवास्तव (किरन)
पीयूष मिश्रा (पृथ्वी बन्ना)
फ़िल्म की मुख्य थीम
यह फ़िल्म 'मासूमियत के खोने' (Loss of Innocence) की कहानी है। यह दिखाती है कि कैसे राजस्थान के एक काल्पनिक शहर राजपुर में, कॉलेज की राजनीति (Student Politics), पुरानी रजवाड़ी शान (Royalty), अलगाववाद (Separatism) और सत्ता की भूख... एक सीधे-सादे लड़के को भ्रष्ट और बर्बाद कर देती है।
फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)
भाग 1: मासूमियत और रैगिंग
दिलीप सिंह (राज सिंह चौधरी): एक सीधा-सादा, आदर्शवादी लड़का है जो राजपुर के एक कॉलेज में कानून (Law) की पढ़ाई करने आता है। वह कॉलेज हॉस्टल में रहता है।
रैगिंग: कॉलेज में, रणसा सिंह (अभिमन्यु सिंह), जो एक शाही राजपूत परिवार का बेटा है, अपने साथियों के साथ दिलीप की क्रूर रैगिंग करता है। वे दिलीप को नंगा करके उसके कमरे में बंद कर देते हैं।
इस घटना से दिलीप टूट जाता है और हॉस्टल छोड़ने का फैसला करता है।
दुके बन्ना से मुलाकात: तभी उसकी मुलाकात दुके बन्ना (के. के. मेनन) से होती है, जो एक शक्तिशाली और करिश्माई स्थानीय नेता है। दुके बन्ना, राजपुर को एक अलग 'राजपूताना' राज्य बनाने के लिए एक अलगाववादी आंदोलन चला रहा है।
दुके बन्ना, दिलीप को सांत्वना देता है और उसे अपने आंदोलन में शामिल कर लेता है। वह दिलीप को रैगिंग का "बदला" लेने के लिए कॉलेज चुनाव लड़ने के लिए उकसाता है।
भाग 2: राजनीति और रणसा का बदलना
रैगिंग करने वाला रणसा, असल में दिल का बुरा नहीं है। वह अपने पिता की मर्दानगी भरी छवि के दबाव में गुंडागर्दी करता है। वह भी दुके बन्ना के अलगाववादी आंदोलन का हिस्सा है।
दिलीप, दुके बन्ना के समर्थन से, कॉलेज में जनरल सेक्रेटरी (GS) का चुनाव लड़ता है।
चुनाव प्रचार के दौरान, रणसा को अपने पिता (जो दुके बन्ना का भाई है) की अवैध गतिविधियों का पता चलता है। रणसा अपने पिता के खिलाफ हो जाता है और चुनाव में दिलीप का समर्थन कर देता है।
दिलीप चुनाव जीत जाता है। दिलीप, रणसा, दुके बन्ना और उनकी बहन किरन (आदित्य श्रीवास्तव), सब एक हो जाते हैं।
भाग 3: पहली हत्या और सत्ता का नशा
दुके बन्ना, दिलीप को अपने आंदोलन का "चेहरा" बनाता है। दिलीप, जो कभी सीधा-सादा था, अब सत्ता के नशे में चूर होने लगता है।
रणसा की हत्या: रणसा, जो अब सुधर गया था और दिलीप का दोस्त बन गया था, अपने ही पिता के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने की कोशिश करता है। इसके तुरंत बाद, रणसा की हत्या हो जाती है।
दुके बन्ना, दिलीप को यकीन दिलाता है कि यह हत्या विरोधी गैंग ने की है।
भाग 4: प्यार, धोखा और असली खेल
किरन (आदित्य श्रीवास्तव): जो दुके बन्ना की बहन के रूप में रहती है, असल में वह एक हिजड़ा (Eunuch) है और दुके बन्ना की नाजायज़ औलाद है। वह दुके बन्ना से नफरत करता है क्योंकि दुके ने उसे कभी बेटे के रूप में स्वीकार नहीं किया।
अनुजा (जेसी रंधावा): कॉलेज की लेक्चरर, जो दिलीप से प्यार करने का नाटक करती है, लेकिन असल में वह दुके बन्ना के लिए काम करती है।
बड़ा ट्विस्ट: दुके बन्ना, दिलीप को सिर्फ एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा था। रणसा की हत्या भी दुके बन्ना ने ही करवाई थी, क्योंकि रणसा उसके अलगाववादी आंदोलन के खिलाफ जा रहा था।
दुके बन्ना का असली मकसद सिर्फ राजपूताना राज्य बनाना नहीं, बल्कि अवैध हथियारों का कारोबार करना और अपने दुश्मनों को खत्म करना है।
भाग 5: क्लाइमेक्स - पतन (The Fall)
किरन, जो अपने पिता दुके बन्ना से बदला लेना चाहता है, वह दिलीप को भड़काता है। वह दिलीप को यकीन दिलाता है कि उसे अगला 'राजा' (आंदोलन का नेता) बनना चाहिए।
सत्ता के नशे में अंधा हो चुका दिलीप, दुके बन्ना के खिलाफ हो जाता है।
एक रात, किरन एक प्लान बनाता है। वह दिलीप को दुके बन्ना के कमरे में भेजता है और खुद दुके को मार डालता है। इल्ज़ाम दिलीप पर आ जाता है।
किरन, दुके बन्ना के सभी वफादारों को भी मरवा देता है और खुद आंदोलन का नया नेता बन जाता है।
किरन, दिलीप को बताता है कि उसने (दिलीप ने) सिर्फ मोहरे का काम किया है और अब उसकी ज़रूरत नहीं है।
किरन, दिलीप को उसी हॉस्टल के कमरे में ले जाता है, जहाँ फ़िल्म की शुरुआत में उसकी रैगिंग हुई थी।
अंत (Ending):
किरन, दिलीप को बुरी तरह मारता है और उसे "नाजायज़ औलाद" कहकर उसका अपमान करता है (जैसे किरन का अपना बाप दुके बन्ना उसका करता था)। अंत में, किरन, दिलीप के चेहरे पर 'गुलाल' मलता है और उसे गोली मार देता है।
फ़िल्म इस बात पर खत्म होती है कि कैसे एक मासूम लड़का सत्ता की इस खूनी राजनीति का शिकार बन गया। "गुलाल" यहाँ जीत का नहीं, बल्कि खून और धोखे का प्रतीक बन जाता है।
