Gadar - Ek Prem Katha Sunny Deol All time Blockbuster Movie
फ़िल्म का विवरण  
नाम: ग़दर: एक प्रेम कथा (Gadar: Ek Prem Katha)  
रिलीज़: 15 जून 2001  
निर्देशक: अनिल शर्मा  
मुख्य कलाकार:  
सनी देओल (तारा सिंह)  
अमीषा पटेल (सकीना अली)  
अमरीश पुरी (मेयर अशरफ अली)  
उत्कर्ष शर्मा (चरणजीत "जीते" सिंह, बेटा)  
विवेक शौक (दरमियाँ सिंह, तारा का दोस्त)  
  
फ़िल्म की मुख्य थीम  
यह फ़िल्म 1947 में भारत के बंटवारे (Partition) की पृष्ठभूमि पर आधारित एक ज़बरदस्त प्रेम कहानी है। यह एक सिख ट्रक ड्राइवर तारा सिंह और एक अमीर मुस्लिम लड़की सकीना की कहानी है, जो बंटवारे के दंश और दो देशों की नफरत के बीच अपने प्यार और परिवार को बचाने के लिए लड़ते हैं।  
  
फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)  
भाग 1: बंटवारा और सकीना का बचाव  
कहानी 1947 में शुरू होती है। तारा सिंह (सनी देओल) एक सिख ट्रक ड्राइवर है, जो लाहौर के एक अमीर मुस्लिम राजनीतिक परिवार की बेटी सकीना (अमीषा पटेल) से प्यार करता है (वह उसके कॉलेज में गाना गाने जाता था)।  
बंटवारे की घोषणा होती है और पूरे देश में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठते हैं। सकीना का परिवार (पिता मेयर अशरफ अली (अमरीश पुरी) और माँ) पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन पकड़ने की कोशिश करता है।  
भगदड़ में, सकीना अपने परिवार से बिछड़ जाती है और स्टेशन पर अकेली रह जाती है। एक हिंसक भीड़ उसे मारने के लिए घेर लेती है।  
तभी तारा सिंह वहाँ पहुँचता है और सकीना की जान बचाता है। भीड़ से बचाने के लिए, तारा सिंह अपनी जान पर खेलकर सकीना की मांग में (अपने खून से) सिन्दूर भर देता है, यह दिखाने के लिए कि वह अब उसकी सिख पत्नी है।  
भाग 2: एक नया परिवार  
तारा, सकीना को अपने घर ले आता है। शुरू में सकीना अपने परिवार को खोने के सदमे में रहती है, लेकिन धीरे-धीरे उसे तारा की अच्छाई और साफ दिल से प्यार हो जाता है।  
वे दोनों सही मायने में शादी कर लेते हैं और उनका एक बेटा होता है, जिसका नाम चरणजीत "जीते" सिंह रखा जाता है। उनका परिवार खुशी-खुशी भारत में रह रहा होता है।  
भाग 3: अलगाव (पाकिस्तान का बुलावा)  
कई साल बाद (1954), सकीना को एक पुराने अखबार में अपने पिता अशरफ अली की तस्वीर दिखती है। उसे पता चलता है कि उसका परिवार मरा नहीं था, बल्कि सुरक्षित पाकिस्तान पहुँच गया था और उसके पिता अब लाहौर के मेयर (Mayor) बन गए हैं।  
सकीना अपने पिता से मिलने के लिए बेचैन हो जाती है। तारा उसे खुशी-खुशी पाकिस्तान जाने के लिए भेजता है।  
भाग 4: पाकिस्तान में साज़िश  
सकीना जब लाहौर पहुँचती है, तो अशरफ अली उससे मिलकर खुश होता है, लेकिन वह तारा सिंह (एक सिख) के साथ उसकी शादी को स्वीकार नहीं करता।  
अशरफ अली, सकीना को धोखे से घर में कैद कर लेता है, उसका पासपोर्ट जला देता है और उसे बताता है कि उसकी "शादी" एक पाप थी। वह ज़बरदस्ती सकीना की शादी एक पाकिस्तानी लड़के से तय कर देता है और उसे वापस भारत जाने से रोक देता है।  
भाग 5: तारा सिंह का पाकिस्तान में प्रवेश  
जब कई महीनों तक सकीना वापस नहीं लौटती और उसके खत आने बंद हो जाते हैं, तो तारा सिंह को चिंता होती है। वह फैसला करता है कि वह अपनी पत्नी को वापस लाएगा।  
तारा सिंह, अपने बेटे 'जीते' के साथ, अवैध रूप से (बिना वीज़ा) पाकिस्तान में घुस जाता है।  
भाग 6: क्लाइमेक्स - "हिंदुस्तान ज़िंदाबाद"  
तारा सिंह, सकीना को ढूँढते हुए अशरफ अली की हवेली पहुँचता है। अशरफ अली और उसका पूरा परिवार तारा को देखकर हैरान रह जाता है।  
अशरफ अली उसका बहुत अपमान करता है और उसे सकीना को भूल जाने को कहता है।  
यहीं पर फ़िल्म का सबसे प्रसिद्ध सीन आता है: जब अशरफ अली की भीड़ तारा को धमकाती है, तो तारा सिंह गुस्से में हवेली में लगा एक हैंडपंप (Handpump) उखाड़ देता है और अकेले ही सैकड़ों लोगों से भिड़ जाता है।  
अशरफ अली डर जाता है और तारा के सामने दो शर्तें रखता है:  
तारा को इस्लाम कबूल करना होगा।  
उसे "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" बोलना होगा।  
तारा, सकीना के लिए इस्लाम कबूल करने को तैयार हो जाता है। लेकिन जब उसे "हिंदुस्तान मुर्दाबाद" कहने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वह भड़क उठता है और अपना मशहूर डायलॉग बोलता है:  
  
"हिंदुस्तान ज़िंदाबाद था, ज़िंदाबाद है, और ज़िंदाबाद रहेगा!"  
  
अंत (Ending):  
अशरफ अली, तारा को मारने का आदेश देता है। तारा, सकीना और जीते को लेकर हवेली से भाग निकलता है।  
अशरफ अली और पूरी पाकिस्तानी सेना उनके पीछे लग जाती है। एक लंबी और खूनी लड़ाई के बाद, वे एक मालगाड़ी पकड़ लेते हैं।  
फ़िल्म का अंत तारा, सकीना और जीते के ट्रेन से भारत-पाकिस्तान की सीमा पार करने और सुरक्षित भारत लौटने के साथ होता है।
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			
			