KANNAPPA 2025 South Superhit Movie
फ़िल्म का विवरण
नाम: कन्नप्पा (Kannappa)
रिलीज़: 27 जून 2025
निर्देशक: मुकेश कुमार सिंह
मुख्य कलाकार:
विष्णु मांचू (थिन्नाडु / कन्नप्पा)
प्रीति मुखुन्धन (नेमाली)
बड़े कैमियो (विशेष उपस्थिति):
अक्षय कुमार (भगवान शिव)
प्रभास (रुद्र - शिव के दूत/भक्त)
मोहनलाल (किरात - शिव का एक रूप)
काजल अग्रवाल (देवी पार्वती)
मोहन बाबू (महादेव शास्त्री)
आर. सरथकुमार (नाथनाथुडु)
फ़िल्म की मुख्य थीम (यह किस बारे में है?)
यह फ़िल्म हिंदू पौराणिक कथाओं के एक महान शिव भक्त 'कन्नप्पा' (जिन्हें 63 नयनार संतों में से एक माना जाता है) की सच्ची कहानी पर आधारित है। यह एक नास्तिक और शिकारी 'थिन्नाडु' के भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त 'कन्नप्पा' बनने की यात्रा है। यह फ़िल्म दिखाती है कि सच्ची भक्ति किसी पूजा-पाठ या रस्मों की मोहताज नहीं होती।
फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)
भाग 1: थिन्नाडु (नास्तिक योद्धा)
कहानी थिन्नाडु (विष्णु मांचू) से शुरू होती है, जो एक आदिवासी योद्धा है। वह बचपन में अपने एक दोस्त की बलि होते हुए देखता है, जिससे उसका देवताओं और पूजा-पाठ से विश्वास उठ जाता है। वह एक घोर नास्तिक बन जाता है जो मूर्तियों को सिर्फ पत्थर मानता है।
थिन्नाडु का कबीला और पास के मंदिर का मुख्य पुजारी महादेव शास्त्री (मोहन बाबू) के बीच हमेशा टकराव रहता है, क्योंकि महादेव शास्त्री थिन्नाडु की नास्तिकता को पसंद नहीं करते।
थिन्नाडु को राजकुमारी नेमाली (प्रीति मुखुन्धन) से प्यार हो जाता है, जो एक शिव भक्त है।
भाग 2: शिव से पहली मुलाकात
एक दिन शिकार करते हुए थिन्नाडु अपने दोस्तों से बिछड़ जाता है और जंगल में भटकते हुए एक सुनसान शिव मंदिर (श्रीकालहस्ती) पहुँचता है। वहाँ उसे पहली बार शिवलिंग (वायु लिंग) को देखकर एक अजीब सा आकर्षण महसूस होता है।
उसे पूजा करने का सही तरीका नहीं पता होता। इसलिए, वह अपनी भक्ति अपने तरीके से दिखाता है:
वह नदी से अपने मुँह में पानी भरकर लाता है और शिवलिंग पर कुल्ला करके उनका "अभिषेक" करता है।
वह अपने शिकार किए हुए जानवर का मांस भूनकर उन्हें "भोग" लगाता है।
वह जंगल से फूल तोड़कर अपने बालों से निकालकर शिवलिंग पर चढ़ाता है।
जब मुख्य पुजारी महादेव शास्त्री यह सब (मांस, जूठा पानी) देखता है, तो वह इसे 'अपवित्र' मानकर क्रोधित हो जाता है और थिन्नाडु को दंडित करता है।
भाग 3: भक्ति की परीक्षा (क्लाइमेक्स)
भगवान शिव (अक्षय कुमार) अपने भक्त की सच्ची श्रद्धा को दुनिया के सामने साबित करने के लिए एक लीला रचते हैं।
जब थिन्नाडु मंदिर में आता है, तो वह देखता है कि शिवलिंग की एक आँख से खून (आँसू) बह रहा है। उसे लगता है कि उसके भगवान की आँख ज़ख़्मी हो गई है।
वह जड़ी-बूटियाँ लगाता है, लेकिन खून नहीं रुकता। तब उसे लगता है कि "आँख के बदले आँख" ही इलाज है। वह तुरंत अपना एक तीर निकालता है और अपनी एक आँख निकालकर शिवलिंग पर लगा देता है। खून बहना बंद हो जाता है।
थिन्नाडु खुश हो जाता है, लेकिन तभी शिवलिंग की दूसरी आँख से भी खून बहना शुरू हो जाता है।
थिन्नाडु बिना एक पल सोचे अपनी दूसरी आँख भी निकालने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन वह सोचता है कि अगर वह अंधा हो गया, तो उसे पता कैसे चलेगा कि शिवलिंग पर ज़ख़्म कहाँ है।
इसलिए, वह अपना पैर उठाकर शिवलिंग पर उस जगह रखता है जहाँ ज़ख़्म था (ताकि निशान बना रहे) और जैसे ही वह अपनी दूसरी आँख निकालने के लिए तीर उठाता है...
अंत (The Ending)
भगवान शिव (अक्षय कुमार) स्वयं प्रकट होते हैं। वह थिन्नाडु को रोकते हैं और उसकी इस निस्वार्थ और सर्वोच्च भक्ति से प्रसन्न होते हैं।
शिव उसे "कन्नप्पा" नाम देते हैं (जिसका अर्थ है "जिसने अपनी आँख अर्पित कर दी")। भगवान शिव कन्नप्पा की दोनों आँखें लौटा देते हैं और उसे मोक्ष प्रदान करते हैं।
इस पूरी घटना को रुद्र (प्रभास) और अन्य देवता देख रहे होते हैं और वे कन्नप्पा की भक्ति की जय-जयकार करते हैं। पुजारी महादेव शास्त्री को भी अपनी गलती का एहसास होता है कि सच्ची भक्ति ज्ञान (ज्ञान योग) से नहीं, बल्कि प्रेम और समर्पण (भक्ति योग) से आती है।
फ़िल्म के अंत में कन्नप्पा (थिन्नाडु) अपना नश्वर शरीर त्याग कर भगवान शिव में विलीन हो जाता है।

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