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The Kashmir Files, Most Hit Drama Film 2022

15 Vues· 04 Novembre 2025
Rohit Choudhary
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⁣फ़िल्म का विवरण
नाम: द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files)
रिलीज़: 2022 (11 मार्च 2022)
निर्देशक: विवेक अग्निहोत्री
मुख्य कलाकार:
अनुपम खेर (पुष्कर नाथ पंडित)
मिथुन चक्रवर्ती (IAS ब्रह्म दत्त)
दर्शन कुमार (कृष्णा पंडित)
पल्लवी जोशी (राधिका मेनन)
चिन्मय मांडलेकर (फारूक मलिक बिट्टा)
आधार: यह फ़िल्म 1990 में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के पलायन (Exodus) और उन पर हुए अत्याचारों की घटनाओं पर आधारित होने का दावा करती है।

फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)
यह कहानी दो टाइमलाइन में चलती है: 1990 (अत्याचार के समय) और वर्तमान (लगभग 2020), जो एक युवा लड़के की अपनी जड़ों की खोज के इर्द-गिर्द घूमती है।
भाग 1: कृष्णा पंडित और उसका 'आज़ादी' नैरेटिव
वर्तमान में, कृष्णा पंडित (दर्शन कुमार) दिल्ली के JNU (ANU के रूप में दिखाया गया) में एक छात्र है। वह अपने प्रोफेसर राधिका मेनन (पल्लवी जोशी) से बहुत प्रभावित है, जो एक वामपंथी कार्यकर्ता है।
कृष्णा को लगता है कि उसके माता-पिता की कश्मीर में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। वह कश्मीर की 'आज़ादी' का समर्थन करता है और मानता है कि 'पलायन' कोई 'नरसंहार' (Genocide) नहीं था, बल्कि एक सामान्य पलायन था।
वह अपने दादा, पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) के साथ रहता है, जो हमेशा 370 हटाने और कश्मीर वापस जाने की बात करते रहते हैं।
भाग 2: दादा की अंतिम इच्छा
पुष्कर नाथ पंडित की मृत्यु हो जाती है। उनकी अंतिम इच्छा होती है कि उनका पोता कृष्णा उनकी राख को कश्मीर में उनके पुराने घर में बिखेरे।
कृष्णा, जो यूनिवर्सिटी चुनाव लड़ने वाला होता है, अनिच्छा से अपने दादा की राख लेकर कश्मीर जाता है।
भाग 3: 'फाइल्स' का खुलना (सच से सामना)
कश्मीर में कृष्णा, अपने दादा के चार सबसे अच्छे दोस्तों से मिलता है: IAS ब्रह्म दत्त (मिथुन चक्रवर्ती), DIG हरि नारायण, डॉ. महेश कुमार और पत्रकार विष्णु राम।
ये चारों दोस्त कृष्णा को वो 'फाइल्स' (सच्चाई) दिखाते हैं, जो उससे छिपाई गई थी। फिल्म फ्लैशबैक में 1989-90 का क्रूर दौर दिखाती है:
आतंक की शुरुआत: कैसे कश्मीरी पंडितों को खुलेआम धमकियाँ दी गईं, उनके घरों पर हिट-लिस्ट चिपकाई गई और "रालिव, त्सालिव या गालिव" (Ralive, Tsaliv ya Galive - यानी धर्म बदलो, भाग जाओ या मर जाओ) के नारे लगाए गए।
बिट्टा कराटे का आतंक: फारूक मलिक बिट्टा (चिन्मय मांडलेकर), जो एक खूंखार आतंकवादी है, खुलेआम पंडितों को मारता है (एक सीन में वह कृष्णा के पिता को चावल के ड्रम में छिपा हुआ ढूंढकर गोली मार देता है)।
प्रशासन का पतन: IAS ब्रह्म दत्त बताते हैं कि कैसे तत्कालीन सरकार और पुलिस प्रशासन ने पंडितों की मदद करने से इनकार कर दिया और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया।
भाग 4: सबसे क्रूर सच (क्लाइमेक्स फ्लैशबैक)
कृष्णा को लगता है कि उसके माता-पिता की मृत्यु चावल के ड्रम वाली घटना में हुई थी। लेकिन दादा के दोस्त उसे सबसे भयानक सच बताते हैं—नदीमार्ग नरसंहार (Nadimarg Massacre) का।
फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि आतंकवादी, कृष्णा की माँ (शारदा) और उसके बड़े भाई सहित कई पंडितों को पकड़ लेते हैं।
आतंकवादी, शारदा को अपने पति (जिसे पहले ही मार दिया गया था) का खून सने चावल खाने के लिए मजबूर करते हैं। जब वह मना करती है, तो आतंकवादी उसके बड़े भाई को गोली मार देते हैं।
इसके बाद, शारदा को एक आरा मशीन (mechanical saw) पर जिन्दा काटकर मार दिया जाता है। छोटा कृष्णा (जो तब बच्चा था) यह सब छिपकर देख लेता है और सदमे से सब भूल जाता है। पुष्कर नाथ पंडित उसे लेकर भागने में सफल हो जाते हैं।
अंत (Ending):
पूरी सच्चाई जानकर कृष्णा टूट जाता है। वह वापस दिल्ली अपनी यूनिवर्सिटी आता है, जहाँ उसे प्रोफेसर मेनन के पक्ष में 'आज़ादी' पर भाषण देना होता है।
इसके बजाय, कृष्णा मंच पर जाता है और पहली बार अपने दादा, माता-पिता और कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों और 'नरसंहार' की पूरी सच्चाई छात्रों को बताता है। वह राधिका मेनन के प्रोपेगेंडा का पर्दाफाश करता है। फिल्म कृष्णा के इस भाषण और वास्तविक पीड़ितों के दृश्यों के साथ समाप्त होती है।

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Nidhi Sahu
Nidhi Sahu 8 heures depuis

kashmiri pandit's story

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