Este vídeo tem restrição de idade para espectadores menores de 18 anos

Crie uma conta ou faça login para confirmar sua idade.

A seguir

History of बिरसा मुंडा। #story

3 Visualizações· 17 Novembro 2025
sanju007
sanju007
Assinantes
0

⁣झारखंड के घने जंगलों के बीच बसे छोटे से गाँव उलीहातू में 15 नवंबर 1875 को एक ऐसा बच्चा जन्मा, जिसने आगे चलकर अंग्रेज़ों को चुनौती दी और अपने लोगों के दिलों में भगवान जैसा स्थान पा लिया। वह बच्चा था — बिरसा मुंडा। बचपन से ही बिरसा दूसरों से अलग थे। तेज़ दिमाग, जिज्ञासा और असाधारण नेतृत्व क्षमता उनके अंदर साफ झलकती थी। वे जंगल के पेड़ों, नदी, मिट्टी से गहरा लगाव रखते थे। उनका मानना था कि “धरती हमारी माँ है” और उसकी रक्षा हमारा कर्तव्य। समय बीतता गया। अंग्रेज़ों ने नई जमीन नीति लागू की, जिसमें आदिवासियों की जमीन जमींदारों और बाहरी लोगों को दे दी गई। जंगलों में प्रवेश और लकड़ी काटने पर भी रोक लगा दी गई। सदियों से अपनी धरती पर जो समुदाय स्वतंत्र था, वह अब गरीबी, भूख और अन्याय के जाल में फँसने लगा। बिरसा ने यह सब अपनी आँखों से देखा। वे समझ चुके थे कि अब चुप रहना संभव नहीं। उनके भीतर एक आग जल उठी — अन्याय के खिलाफ खड़े होने की आग। युवावस्था में उन्होंने पढ़ाई के दौरान समाज में फैलते नशे, अंधविश्वास और कुरीतियों को भी देखा। उन्होंने समझ लिया कि जब तक उनका समाज जागेगा नहीं, तब तक कोई लड़ाई जीती नहीं जा सकती। यही सोचकर बिरसा ने समाज सुधार की शुरुआत की — लोगों से कहा, शराब छोड़ो, मेहनत करो, अपने अधिकार को पहचानो। धीरे–धीरे लोग उनके आसपास इकट्ठा होने लगे। किसी ने उन्हें नेता कहा… किसी ने मसीहा… और कुछ लोगों ने तो उन्हें भगवान का अवतार मान लिया। लोग उन्हें “धरती आबा” कहने लगे। और फिर आया साल 1899— जब बिरसा ने अपने लोगों को संगठित कर अंग्रेज़ सरकार और अत्याचारी जमींदारों के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन का नाम पड़ा — उलगुलान, यानी महाविद्रोह। बिरसा का नारा जंगलों में गूंजने लगा — “अबुआ दिसुम, अबुआ राज” #knowledge#life#jharkhand#history

Mostre mais

 0 Comentários sort   Ordenar por


A seguir