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अपना अपना भाग्य - जैनेन्द्र कुमार #कहानी Aapana Aapana bhagaya - Jainendra Kumar #Text #Book

5 Pogledi· 20 Prosinac 2025
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जैनेंद्र प्रेमचंद-परम्परा के प्रमुख साहित्यकारों में एक प्रसिद्‌ध नाम है। इन्होंने उच्चशिक्षा काशी विश्वविद्‌यालय से प्राप्त की। सन्‌ 1921 ई० में पढ़ाई छोड़कर, गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। नागपुर में इन्होंने राजनीतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में भी कार्य किया। इनकी प्रथम कहानी ’खेल’ विशाल भारत पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1929 में इनका पहला उपन्यास ’परख’ प्रकाशित हुआ जिस पर उन्हें हिन्दुस्तान अकादमी का पुरस्कार भी मिला। जैनेंद्र ने अपनी रचनाओं में पात्रों के चरित्र-चित्रण में सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि का परिचय दिया है। जैनेंद्र कुमार की भाषा सहज है, पर जहाँ विचारों की अभिव्यक्ति का मामला आता है, उनकी भाषा गम्भीर हो जाती है। इनकी भाषा में अरबी, फ़ारसी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

प्रमुख रचनाएँ - फाँसी, जयसंधि, वातायन, एक रात, दो चिड़ियाँ, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, सुखदा आदि।

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