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Bholaram ka jeev harishankar parsai #kahani भोलाराम का जीव हरिशंकर परसाई #कहानी #Text #Book

1 vistas· 18 Diciembre 2025
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लेखक-परिचय

हरिशंकर परसाई उन रचनाकारों में अग्रणी हैं जिन्होंने साहित्य की प्रचलित विध की मर्यादा तोड़कर लिखना आरम्भ किया। परसार्इ जी व्यंग्य लेखक हैं। चारों ओर के समाज में पफैले पाखंड, अन्याय, विद्रूप, अनुपातहीनता, विषमता, दमन, शोषण, छल, स्वार्थपरता, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच का भेदभाव और इस तरह की दूसरी विÑतियों के कारण परसार्इ जी को व्यंग्य की अपार सामग्री प्राप्त हुर्इ। पहले वे संवेदनशील कवि थे। आज भी जबलपुर में बहुत से लोग उन्हें 'कविजी के नाम से याद करते हैं। जीवन की विÑतियों को उन्होंने सिपर्फ देखा न था, झेला भी था। अपने 'गर्दिश के दिन याद करते हुए उन्होंने लिखा था, ''गर्दिश को पिफर याद करने, उसे जीने में दारुण कष्ट है। (आँखन देखी, सं. कमला प्रसाद, 1981. पृ. 24) यह दुख की सच्चार्इ है। 12-13 साल के थे, तभी गाँव में प्लेग आया। उनके परिवार के अलावा बाकी सभी लोग जंगल में भाग गये। परिवार पर गर्दिश आयी, ''पाँच भार्इ-बहनों में माँ की मृत्यु का अर्थ मैं ही समझता था-सबसे बड़ा था।(उपयर्ुक्त. पृ. 25)पिता टूट गये। ध्ंध ठप्प हो गया। किसी तरह मैटि्रक पूरी हुर्इ

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