चाक्षुषोपनिषद चक्षु स्तोत्रम् - विवरण तथा हिंदी भावार्थ Stotram सनातन Hindu
चाक्षुषोपनिषद |
विवरण एवं हिंदी भावार्थ
कृष्ण यजुर्वेदीय चाक्षुषोपनिषद में चक्षु रोगों को दूर करने की सामर्थ्य का वर्णन किया गया है। इन रोगों को दूर करने के लिए सूर्य देव से प्रार्थना की गयी है। प्रार्थना में कहा गया है कि सूर्यदेव अज्ञान-रूपी अंधकार के बन्धनों से मुक्त करके प्राणी जगत को दिव्य तेज प्रदान करें। इसमें तीन मंत्र हैं। इस चक्षु विद्या के मंत्र-दृष्टा ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं। इसे गायत्री छंद में लिखा गया है। नेत्रों की शुद्ध और निर्मल ज्योति के लिए यह उपासना कारगर है।
ऋषि उपासना करते हैं-‘हे चक्षु के देवता सूर्यदेव! आप हमारी आंखों में तेजोमय रूप से प्रतिष्ठित हो जायें। आप हमारे नेत्र रोगों को शीघ्र शांत करें। हमें अपने दिव्य स्वर्णमय प्रकाश का दर्शन कराया। हे तेजस्वरूप भगवान सूर्यदेव! हम आपको नमन करते हैं। आप हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलें। आप हमें अज्ञान-रूपी अंधकार से ज्ञान-रूपी प्रकाश की ओर गमन कराएं। मृत्यु से अमृतत्व की ओर ले चलें। आपके तेज़ की तुलना करने वाला कोई अन्य नहीं है। आप सच्चिदानन्द स्वरूप है। हम आपको बार-बार नमन करते हैं। विश्वरूप आपके सदृश भगवान विष्णु को नमन करते हैं।’
चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र से बढ़ाएं अपनी नेत्र ज्योति एवं दूर करें नेत्र विकार
अगर आपकी नेत्र ज्योति कमजोर है और बचपन में ही आपको चश्मा पहनना पड़ गया है तो इस चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र के नियमित जप से आप भी अपनी नेत्र ज्योति (Eye Sight) ठीक कर सकते हैं। यह चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र इतना प्रभाव शाली है की यदि आपको आँखों से सम्बंधित कोई बीमारी है तो अगर एक ताम्बे के लोटे में जल भरकर, पूजा स्थान में रखकर उसके सामने नियमित इस स्तोत्र के २१ बार पाठ करने के उपरान्त उस जल से दिन में ३-४ बार आँखों को छींटे मारने पर कुछ ही समय में नेत्र रोग से मुक्ति मिल जाती है। बस आवश्यकता है , श्रद्धा, विश्वास एवं अनुष्ठान आरम्भ करने की। आईये इस स्तोत्र को जानते हैं।
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष रविवार को सूर्योदय के आसपास आरम्भ करके रोज इस स्तोत्र के ५ पाठ करें। सर्वप्रथम भगवान सूर्य नारायण का ध्यान करके दाहिने हाथ में जल, अक्षत, लाल पुष्प लेकर विनियोग मंत्र पढ़े।
हिंदी भावार्थ :
विनियोग: 'ॐ इस चाक्षुषी विद्या क ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं, गायत्री छन्द है, सूर्यनारायण देवता हैं तथा नेत्ररोग शमन हेतु इसका जाप होता है।
हे परमेश्वर, हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव। आप मेरे चक्षुओं में चक्षु के तेजरूप से स्थिर हो जाएँ। मेरी रक्षा करें। रक्षा करें। मेरी आँखों का रोग समाप्त करें। समाप्त करें। मुझे आप अपना सुवर्णमयी तेज दिखलायें। दिखलायें। जिससे में अँधा न होऊं। कृपया वैसे ही उपाय करें, उपाय करें। आप मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। मेरे जितने भी पीछे जन्मों के पाप हैं जिनकी वजह से मुझे नेत्र रोग हुआ है उन पापों को जड़ से उखाड़ दे, दें। हे सच्चिदानन्दस्वरूप नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले दिव्यस्वरूपी भगवान भास्कर आपको नमस्कार है। ॐ सूर्य भगवान को नमस्कार है। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। ॐ आकाशविहारी आपको नमस्कार है। परमश्रेष्ठ स्वरुप आपको नमस्कार है। ॐ रजोगुण रुपी भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। तमोगुण के आश्रयभूत भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। हे भगवान आप मुझे असत से सत की और जाईये। अन्धकार से प्रकाश की और ले जाइये। मृत्यु से अमृत की और ले चलिये। हे सूर्यदेव आप उष्णस्वरूप हैं, शुचिरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य, शुचि तथा अप्रतिरूप रूप हैं। उनके तेजोमयी स्वरुप की समानता करने वाला कोई भी नहीं है। जो ब्राह्मण इस चक्षुष्मतिविद्या का नित्य पाठ करता है उसे कभी नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होता है। उसके कुल में कोई अँधा नहीं होता। आठ ब्राह्मणो को इस विद्या को देने (सिखाने) पर इस विद्या की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
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सूर्यनारायण भगवान की जय !!! जय श्रीराम !!!
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अति उत्तम
जय श्री राम
very nice