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Kohinoor दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और विवादित हीरों में से एक है। इसका नाम फ़ारसी भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब है “रोशनी का पर्वत” (Mountain of Light)। यह हीरा भारत से मिला था और इसका इतिहास लगभग 5000 साल पुराना माना जाता है।
कहां मिला था?
Kohinoor सबसे पहले आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा खदानों से निकला था। यह हीरा मुग़लों, फ़ारसियों, अफ़ग़ानों और सिखों के हाथों में रहा।
इतिहास में इसका सफर
इसे मुगल बादशाह बाबर ने भी अपनी किताब में जिक्र किया है।
नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण करके इसे अपने साथ फारस ले गया और वहीं इसका नाम “Koh-i-Noor” पड़ा।
महाराजा रणजीत सिंह के पास यह हीरा लंबे समय तक रहा।
बाद में अंग्रेजों ने इसे पंजाब से अपने कब्जे में लेकर ब्रिटेन भेज दिया।
अभी Kohinoor कहां है?
यह हीरा अब ब्रिटेन के Royal Collection में है और पारंपरिक रूप से Queen Consort के मुकुट में लगाया जाता है।
क्यों है विवादित?
भारत, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान सभी इस हीरे पर अपना दावा करते हैं। भारत इसे अपनी ऐतिहासिक धरोहर मानता है और वापस मांगता है।
विशेषताएं
वजन: लगभग 105 कैरेट (पहले इससे भी बड़ा था, बाद में तराशा गया)
रंग: साफ, पारदर्शी
मूल्य: अमूल्य—इसकी कीमत का अनुमान लगाना भी मुश्किल है।
First Surgery in India | Ayurveda, Sushruta & Ancient Medical Science 🌿
India’s ancient medical history is full of wonders — and one of the greatest achievements is the world’s first recorded surgery performed by Acharya Sushruta, the Father of Surgery.
In this video, we explore how Sushruta Samhita, herbal medicines, and natural healing techniques helped shape modern surgical science.
🌿 What you will learn in this video:
✔ Who was Acharya Sushruta
✔ How India performed surgeries thousands of years ago
✔ The use of herbal plants in healing
✔ Ancient tools & techniques used by Indian sages (sadhus)
✔ The amazing history behind the world’s earliest surgical methods
मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज दुनिया में अनोखे हैं क्योंकि इन्हें इंसानों ने नहीं बनाया—इन्हें “उगाया” गया है!
स्थानीय खासी और जयंतिया जनजाति रबर के पेड़ (Ficus elastica) की जड़ों को बाँस और लकड़ी के सहारे सही दिशा में मोड़कर पुल की तरह बढ़ाती हैं।
इन जड़ों को मजबूत होने में 15–20 साल लगते हैं, लेकिन once तैयार हो जाएं तो ये 500–600 साल तक टिकते हैं।
ये पुल जितनी बार चलते हैं उतना ही मजबूत होते जाते हैं—यही है इनका असली Secret!
यह nature + human skill का दुनिया में सबसे सुंदर उदाहरण है।
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Kele Ke Pate Par Khane Ke Fayde
क्या आप जानते हैं कि केले के पत्ते पर खाना सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि सेहत से भरपूर एक प्राकृतिक तरीका है?
इस वीडियो में हम बताएँगे केले के पत्ते पर खाने के 7 बड़े वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक फायदे, जिन्हें जानकर आप भी इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहेंगे।
🍃 केले के पत्ते पर खाने के मुख्य फायदे:
✔️ टॉक्सिन हटाता है – केले के पत्ते में मौजूद पॉलीफेनॉल प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट हैं।
✔️ खाने का स्वाद बढ़ाता है – पत्ते की नैचुरल खुशबू खाने को और स्वादिष्ट बनाती है।
✔️ बैक्टीरिया-फ्री खाना – केला पत्ता एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है।
✔️ प्लास्टिक और स्टील से बेहतर – यह ज़्यादा सेफ़, नैचुरल और इको-फ्रेंडली विकल्प है।
✔️ पाचन शक्ति में सुधार – केले का पत्ता भोजन को हल्का और आसानी से पचने योग्य बनाता है।
✔️ आयुर्वेदिक लाभ – आयुर्वेद में इसे सात्विक भोजन का हिस्सा माना गया है।
✔️ 100% बायोडिग्रेडेबल – पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं।
