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Rohit Choudhary
60 Views · 12 hours ago

⁣फ़िल्म का विवरण
नाम: द ताज स्टोरी (The Taj Story)
रिलीज़: 31 अक्टूबर 2025
निर्देशक: तुषार अमरीश गोयल
मुख्य कलाकार:
परेश रावल (विष्णु दास, एक टूरिस्ट गाइड)
ज़ाकिर हुसैन (अनवर राशिद, विरोधी वकील)
अमृता खानविलकर
नमित दास (अविनाश, विष्णु का बेटा)
स्नेहा वाघ
आधार: यह फ़िल्म एक कोर्टरूम ड्रामा है जो "तेजो महालय" (Tejo Mahalaya) विवाद पर आधारित है। यह उस सिद्धांत को खोजती है जिसके अनुसार ताजमहल बनने से पहले उस स्थान पर एक शिव मंदिर था।

फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)
यह कहानी एक आम टूरिस्ट गाइड की है जो ताजमहल के "असली इतिहास" को सामने लाने के लिए पूरे सिस्टम के खिलाफ कानूनी लड़ाई छेड़ देता है।
भाग 1: गाइड और 'सच्चाई'
कहानी आगरा में शुरू होती है, जहाँ विष्णु दास (परेश रावल) एक अनुभवी टूरिस्ट गाइड है, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी पर्यटकों को ताजमहल की आधिकारिक कहानी सुनाते हुए बिता दी है।
एक इंटरव्यू के दौरान, विष्णु दास अनजाने में यह स्वीकार कर लेता है कि वह ताजमहल के इतिहास के बारे में जो बताता है, उस पर उसे खुद पूरा यकीन नहीं है और वह "सच्ची" कहानी नहीं है। उसका यह वीडियो वायरल हो जाता है।
भाग 2: निलंबन और जनहित याचिका (PIL)
वीडियो वायरल होने के बाद, विष्णु दास पर "ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने" का आरोप लगता है और उसे गाइड एसोसिएशन से निलंबित (suspend) कर दिया जाता है। उसका बेटा अविनाश (नमित दास) भी इस fallout का सामना करता है।
अपनी इज़्ज़त और नौकरी खोने के बाद, अपमानित विष्णु दास फैसला करता है कि वह अब उस "सच्चाई" को बाहर लाकर ही रहेगा, जिस पर वह हमेशा से विश्वास करता आया है।
वह ताजमहल के 22 बंद कमरों को खोलने और यह जाँच करने के लिए एक जनहित याचिका (PIL) दायर करता है कि क्या यह स्मारक शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था या यह एक पुराना राजपूताना महल (राजा जय सिंह का) था जिसे "तेजो महालय" कहा जाता था।
भाग 3: कोर्टरूम ड्रामा
फिल्म का बड़ा हिस्सा एक तनावपूर्ण कोर्टरूम ड्रामा पर केंद्रित है।
विष्णु दास, जिसके पास कोई वकील नहीं होता, शुरू में अपना केस खुद लड़ता है।
सरकार और ऐतिहासिक संस्थानों की तरफ से, एक काबिल और तार्किक वकील अनवर राशिद (ज़ाकिर हुसैन) उसका विरोध करता है।
विष्णु दास अदालत में पुराने ऐतिहासिक ग्रंथों, वास्तुशिल्प विसंगतियों और विदेशी यात्रियों के लेखों का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश करता है कि ताजमहल को एक मकबरे के रूप में नहीं बनाया गया था।
भाग 4: क्लाइमेक्स और फैसला
क्लाइमेक्स में, दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस होती है। अनवर राशिद, विष्णु के सभी दावों को "व्हाट्सएप हिस्ट्री" और बिना सबूत की थ्योरी कहकर खारिज कर देता है।
विष्णु दास अपनी अंतिम दलील में भावुक होकर कहता है कि यह लड़ाई किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि "इतिहास के सच" को जानने के अधिकार के लिए है। वह माँग करता है कि 22 बंद दरवाजों को खोलकर वैज्ञानिक जाँच (जैसे कार्बन डेटिंग) की जानी चाहिए।
अंत (Ending):
फिल्म अदालत के फैसले के साथ समाप्त होती है। (फिल्म के अंत की व्याख्या अलग-अलग हो सकती है, लेकिन आमतौर पर ऐसी फिल्में एक अस्पष्ट या विचारोत्तेजक अंत देती हैं)।
अदालत, सबूतों की कमी या ऐतिहासिक संवेदनशीलताओं का हवाला देते हुए, कमरों को खोलने की याचिका को खारिज कर सकती है, लेकिन यह टिप्पणी करती है कि विष्णु दास ने महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं।
फिल्म दर्शकों को इस सवाल के साथ छोड़ देती है कि क्या इतिहास वही है जो हमें पढ़ाया गया है, या पर्दे के पीछे कोई और "सच" छिपा है, जिसे जानने की कोशिश विष्णु दास ने की।

Rohit Choudhary
32 Views · 17 hours ago

⁣फ़िल्म का विवरण
नाम: द यू.पी. फाइल्स (The UP Files)
रिलीज़: 2024 (26 जुलाई 2024)
निर्देशक: नीरज सहाय (Neeraj Sahai)
मुख्य कलाकार:
मनोज जोशी (मुख्यमंत्री अभय सिंह)
मंजरी फड़नीस (इंस्पेक्टर सुजाता मेनन)
मिलिंद गुणाजी (शादाब)
अशोक समर्थ (अनीस खान)
अनिल जॉर्ज (अब्दुल्ला)
अली असगर (उमाशंकर)
अमन वर्मा (सुजाता मेनन का पति)
शाहबाज़ खान (डीजीपी अजित सिंह)
आधार: यह फ़िल्म उत्तर प्रदेश में घटी "सच्ची घटनाओं" पर आधारित एक पॉलिटिकल ड्रामा है, जो विशेष रूप से 2017 से पहले और बाद के बदलावों पर केंद्रित है।

फ़िल्म की पूरी कहानी (Spoiler Alert)
यह फिल्म एक पारंपरिक कहानी के बजाय, उत्तर प्रदेश की राजनीतिक और आपराधिक स्थिति को दर्शाने वाली कई घटनाओं (फाइल्स) का एक संग्रह है।
भाग 1: 'गुंडाराज' और 'बीमारू प्रदेश'
फ़िल्म की शुरुआत उत्तर प्रदेश की एक अंधकारमय तस्वीर के साथ होती है (2017 से पहले के समय को दर्शाते हुए)।
राज्य में "गुंडाराज" चरम पर है। इसे तीन मुख्य माफिया डॉन चलाते हैं - अब्दुल्ला (अनिल जॉर्ज), अनीस खान (अशोक समर्थ) और शादाब (मिलिंद गुणाजी)।
ये माफिया भू-माफिया (land mafia), अवैध खनन और रंगदारी का रैकेट चलाते हैं। आम जनता और व्यापारी इनके आतंक से त्रस्त हैं।
पुलिस और प्रशासन में भी भारी भ्रष्टाचार है। ईमानदार अधिकारियों को या तो मार दिया जाता है या उनका तबादला कर दिया जाता है।
भाग 2: अभय सिंह का आगमन
राज्य की इस बिगड़ती हालत के बीच, पार्टी हाईकमान अभय सिंह (मनोज जोशी) को उत्तर प्रदेश का नया मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करता है। अभय सिंह (जो स्पष्ट रूप से योगी आदित्यनाथ पर आधारित हैं) एक दृढ़ निश्चयी और ईमानदार नेता हैं।
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही, अभय सिंह की पहली प्राथमिकता राज्य से अपराध और भ्रष्टाचार को खत्म करना और "राम राज" स्थापित करना होती है।
भाग 3: 'फाइल्स' का खुलना और एक्शन
अभय सिंह एक-एक करके पुरानी 'फाइल्स' खोलना शुरू करते हैं।
बुलडोज़र एक्शन: वह माफियाओं द्वारा अवैध रूप से कब्जा की गई ज़मीनों पर बुलडोज़र चलाने का आदेश देते हैं। इससे माफिया सरगनाओं में हड़कंप मच जाता है।
प्रशासनिक सुधार: वह भ्रष्ट नौकरशाहों (bureaucrats) और पुलिस अधिकारियों पर नकेल कसते हैं। उन्हें ग्रामीण इलाकों में ट्रांसफर कर दिया जाता है।
पुलिस का संघर्ष: इसी बीच, एक ईमानदार पुलिस अधिकारी, इंस्पेक्टर सुजाता मेनन (मंजरी फड़नीस), माफिया के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने की कोशिश करती है, लेकिन उसे अपने ही विभाग के भ्रष्ट साथियों से विरोध का सामना करना पड़ता है। मुख्यमंत्री अभय सिंह ऐसे ईमानदार अधिकारियों का समर्थन करते हैं।
कानूनी सुधार: फिल्म में "एक देश, एक कानून" (One Country, One Law) की वकालत की जाती है और महिला कल्याण के मुद्दों को भी उठाया जाता है।
भाग 4: क्लाइमेक्स और 'नया यू.पी.'
फिल्म का क्लाइमेक्स इन माफिया सरगनाओं के पतन को दिखाता है।
अभय सिंह के "नो डिस्कशन, ओनली एक्शन" (No Discussion, Only Action) वाले दृष्टिकोण के कारण, माफिया या तो मारे जाते हैं, या जेल चले जाते हैं या राज्य छोड़कर भागने पर मजबूर हो जाते हैं।
ईमानदार अधिकारियों जैसे सुजाता मेनन को व्यवस्था में न्याय मिलता है।
अंत (Ending):
फिल्म का अंत उत्तर प्रदेश के "परिवर्तन" (transformation) को दिखाकर होता है। यह दिखाया जाता है कि कैसे अभय सिंह के शासन में राज्य "गुंडाराज" और "बीमारू प्रदेश" की छवि से निकलकर एक "विकसित" और "राम राज प्रदेश" बन जाता है।

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