السراويل القصيرة خلق
कहते हैं… भगवान जब चाहें, जिस रूप में चाहें,
अपने भक्तों को दर्शन दे देते हैं।
लेकिन कल जगन्नाथ मंदिर के द्वार पर जो हुआ…
उसने सबके दिलों में एक अनकही कम्पन छोड़ दी।
साँझ का समय था…
घंटियों की ध्वनि हवा में घुल रही थी…
और भीड़ के बीच एक छोटा-सा बच्चा दिखाई दिया।
साधारण वस्त्र…
माथे पर तिलक…
और आँखों में ऐसा तेज़…
मानो पहली ही नज़र में समय ठहर जाए।
वह न कुछ माँग रहा था…
न कुछ बोल रहा था…
बस शांत खड़ा था—
मानों कोई दैवीय संदेश लेकर आया हो।
क्षणभर को ऐसा लगा
जैसे भगवान जगन्नाथ
उसी की आँखों से संसार को देख रहे हों।
हवा थम गई…
भीड़ शांत हो गई…
लोग दूर खड़े होकर हाथ जोड़ने लगे।
ऐसा प्रतीत हो रहा था
मानो भक्ति स्वयं धरती पर उतर आई हो।
जैसे भगवान कह रहे हों—
“मैं यहीं हूँ…
बस सच्ची नीयत से देखने की देर है।”
कौन था वह बच्चा?
कहाँ से आया?
कोई नहीं जानता।
पर जिसने भी उसे देखा…
वह उस क्षण को कभी नहीं भूल पाएगा।
कुछ पल… कथा नहीं होते।
वे दर्शन होते हैं।



